Beti Bachao Beti Padhao- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

Beti Padhao Beti Bachao- सरकार द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बहुत सारी योजनाएं चलाई जाती हैं और बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान के द्वारा समाज मे लड़कों की तरह लड़कियों को भ समान दर्ज मिले इसलिए Beti Padhao Beti Bachao को जोर शोर से चलाया गया हैं।

अगर लड़कों की तुलना में लिग-अनुपात की बात की जाए तो स्थिति काफ़ी गम्भीर हैं इसलिए सरकार द्वारा न केवल बेटीयों को बचाने के लिए बल्कि उनके सशक्तिकरण के लिए Beti Padhao Beti Bachao अभियान को चलाया गया हैं।

क्योंकि विश्व में भारत देश की नींव 6000 वर्ष पूर्व रखी जा चुकी है औऱ तब से लेकर भारत की छवि कृषि प्रधान देश के रूप में की जाती है इसके अतिरिक्त भारत देश को पुरुष प्रधान देश भी कहा जाता है।

ऐसा इसीलिए क्योंकि भारत देश में यह मान्यता सदियों से प्रख्यात है कि लड़के ही परिवार के वंश को आगे बढ़ाते हैं औऱ लड़कियों को पराया धन के रूप में जलील कर दिया जाता है यह भारत देश में बेटियों के खिलाफ बढ़ रहे अत्याचारों एवं अपराधों को बढ़ावा देने में आमंत्रित करते हैं।

आज हम आपको बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ(Beti Padhao Beti Bachao) पर छोटा, मीडियम औऱ लंबा हर तरह की लम्बाई के निबंध प्रदान करने वाले हैं उम्मीद है आपको हमारे द्वारा लिखे गए निबंध पसंद आयगे सबसे पहले कुछ जरूरी चीजें जान लेते है।

Beti Padhao Beti Bachao अभियान क्या हैं

भारत देश आज दुनिया में विकसित देशों में अपना स्थान रखता है इस विकास की रेस में बने रहने के लिए पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी सहयोग दिया है परन्तु महिलाओं की स्थिति भारत में काफी कमजोर ही रही है।

इसकी शुरुआत आज से नहीं अपितु प्राचीन काल से है क्योंकि जनसंख्या के आंकड़े के मुताबिक महिलाओं के प्रति अपराध में काफी वृद्धि हुई है जहाँ 2001 जनगणना के आंकड़ो के मुताबिक 1000 लड़के जन्म लेते थे तो 927 लड़कियाँ ही मात्र देश में जन्म लेती थी।

लेकिन यह संख्या 2011 के जनगणना के मुताबिक निचले स्तर पर आ गई है अब यह संख्या 1000 लड़कों पर 918 लड़कियां ही रह गई है औऱ इस अभियान की शुरुआत इसी संख्या को सही दिशा में मोड़ने के लिए चालू किया गया है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ प्रारंभ औऱ उद्देश्य

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं को शक्ति प्रदान करने के लिए की थी औऱ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ(Beti Padhao Beti Bachao) इसकी शुरुआत हरियाणा के पानीपत से 22 जनवरी 2015 को की गई।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के नाम में ही इसका मुख्य उद्देश्य छिपा है यह पूर्ण अभियान बेटियों के नाम पर समर्पित किया गया है यह अभियान बेटियों के जन्म को एक खुशी का अवसर बनाने के लिए आमंत्रित करता है इसके अन्य उद्देश्य निम्मनलिखित हैं।

-बेटियों को शिक्षा क्षेत्र में निपुण बनाना
-बेटा और बेटी में भेदभाव कम करना
-बेटियों को देश में उनका हक दिलाना
-सही गलत की समझ देना ताकि वे अपनी जंग स्वंय लड़ सके।


बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध
Beti Bachao Beti Padhao Essay Hindi Word 300

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को भारत में बेटियों को पहचान एवं उनका स्थान दिलाने के लिए लागू किया गया क्योंकि बिना औरतों के समाज की कल्पना करना एक हास्यस्पद सोच है परन्तु इस सोच का जन्म भारत में काफी जन्मों पहले हो चुका था।

इसीलिए भारत को पुरुष प्रधान देश कहा जाता है औऱ बेटियों के खिलाफ बढ़ते अपराध का मुख्य कारण देश का पुरुषवादी सोच होना भी है जिसके कारण महिलाओं का पुरुष से आगे बढ़ना समाज को मान्य नहीं होता।

इस अवस्था को समझते हुए और इस परिस्थिति को बेहतर करने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 2015 वें साल को जब कैलेंडर जनवरी की 22 तारीख दिखा रहा था तब हरियाणा के पानीपत में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की नींव रखी गई।

कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, बलात्कार इत्यादी अपराध का शिकार घर की बेटियां ही होती है इसके पीछे की भी वही सोच है पुरुष प्रधान सोच यही पुरुष प्रधान सोच ने ही कई रिश्तों में दरार की वजह बनी औऱ पुरुष स्त्री से वंश बढ़ाने के लिए लड़का पैदा करने की इच्छा तो कर देते हैं परन्तु अगर जीवन के किसी पढाव पर उनकी कुछ इच्छा होती है तो उसे पूरा करने के लिए काफी समय तक सोचना पड़ता है।

पुरुष प्रधान सोच समाज की एक जहरीली सोच है इस जहरीली सोच की भी कुछ खासियत है इस सोच के व्यक्तियों के पास सभी तरह के जवाब मौजूद रहते हैं जिससे यह साबित कर सके कि समाज में सभी गलती औरतों की है औऱ बलात्कार में भी गलती लड़कियों के छोटे कपड़ो की ही है।

सोचिए अगर समाज में लड़कियों का कोई अस्तित्व ही न हो तो खुले बाजार में घूमने वाले हैवान रूपी लड़के शादी विवाह के लिए किससे संपर्क करेंगे सबसे मुख्य बात अपने परिवार के वंश को कैसे बढ़ाएंगे याद रखिएगा लड़कियों के बिना संसार की कल्पना करना ही बेवकूफी है।


बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध
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भारत दुनिया के नक्शे में सबसे प्राचीन देश का खिताब हासिल कर चुका है। इससे यह साबित होता है कि भारत बाकी देश की तुलना में उसके पास काफी समय था खुद को विकसित देशों में शामिल करने का परन्तु भेदभाव की डोर इतनी मजबूत थी कि भारत तय समय सीमा में विकसित देशों में स्वंय को शामिल नहीं हो पाया है।

कभी धार्मिक भेदभाव तो कभी जाति भेदभाव परन्तु जो भारत के विकास की गति को रोकने में सफल हो रहा है वह है लिंग भेदभाव औऱ लड़का-लड़की में भेदभाव भारत में नया नहीं है बल्कि सदियों पुराना है भारत मे औरतों को मात्र चार दीवारों में काम करने वाली के स्वरूप ही मान्यता दी जाती है।

सरकार के कदम औरतों के वर्चस्व को कायम रखने के लिए उनकी अहमियत दर्शाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के शहर पानीपत में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को हरी झंडी दिखाई।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का मुख्य लक्ष्य

इस अभियान का मुख्य लक्ष्य लड़कियों की अहमियत से भारत के पुरुष प्रधान सोच को रूबरू करवाना है। लड़कियों को अशिक्षित से शिक्षित करने के राह पर आगे बढ़ाना भी इसका लक्ष्य है। पुरुषों के लिए इस बात को मान्यता देना की लड़कियां उनसे बेहतर है या उनसे उतीर्ण हो रही है।

यह उनसे सह नहीं जाता इसी सोच को बदलना ही इस अभियान का लक्ष्य है। समाज में किसी भी तरह का भेदभाव कई तरह के अपराध को भी जन्म देता है इन अपराधों में बलात्कार, हत्या, शोषण इत्यादि मौजूद है।

भारत है संस्कार का रूप

भारत को संसार में संस्कार का प्रतीक माना जाता है जहाँ हर व्यक्ति को अपनी हक की आवाज उठाने का अधिकार है परन्तु यही अधिकार की बात जब औरतों करें तो उन्हें खामोश कर दिया जाता है। यह भारत की छवि को खुले अंतराष्ट्रीय बाजार में धूमिल करने का काम करती है। शिशु दर में गिरती गिरावट और बढ़ते रेप केस भारत को औरतों के लिए असुरक्षित महसूस कराते हैं।

बदल गई है सोच

समाज का यह सत्य है कि यहाँ कुछ भी स्थिर नहीं है एक पल में राजा लोगों की नजर में रंक बन जाता है। व्यक्ति की सोच भी ठीक उसी प्रकार की है। एक पल में वे कुछ अलग करने का सोचता है परन्तु करने के वक्त कुछ अलग ही प्रस्तुत कर देता है। कहने का मतलब यह है कि जिस तरह समय तेजी से बदल रहा है नए जमाने के बच्चों की भी सोच बदल गई है आज के वक्त के बच्चे बराबरी शब्द का असल अर्थ समझते हैं।

बेटियां नहीं होती बोझ

बेटियां समाज के लिए बोझ नहीं होती यह तो फरिश्ते होती हैं जो एक परिवार को आगे बढ़ाती है। छोटे भाई के लिए माँ का दूसरा रूप होती हैं औऱ बड़े भाई के लिए आंखों का तारा होती है। पापा के लिए परी होती है और माँ के लिए दूसरा जन्म होती है।

लड़कियों को घर की लक्ष्मी माना जाता हैं अतः लड़कियों को भी उस प्यार का हिस्सा जरूर मिलना ही चाहिए जो प्यार उन्होंने अनेक रूपों में हम सब को परोसी कभी पत्नी के रूप में तो कभी दोस्त के रूप में कभी बहन के रूप में और खासकर एक माँ के रूप में।


बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध
Beti Bachao Beti Padhao Essay Hindi Word 1000

भारत दुनिया में मौजूद सांस्कृतिक देशों का प्रतिनिधित्व करता है यह देश उन नागरिकों के लिए एक स्वर्ग समान है जिन्हें समाज मे एक समानता पसंद हो क्योंकि समूची कायनात में भारत ही ऐसा देश है जिसे आप डिक्शनरी में लिखा सेक्युलर शब्द के अर्थ के बंधन में बांध सकते हैं।

भारत में हर शख्स को बराबरी का दर्जा प्राप्त है इसका सबूत आपको 26 जनवरी की तारीख को बखूबी मिल जाएगा। भारतीय गणतंत्र दिवस को भारत के संविधान के पारित होने पर मनाया जाता है। इसमें मौजूद अनुच्छेद 15 में साफ साफ यह लिखा गया है कि भारत में किसी भी इंसान से धर्म, जाति, रंग एवं लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता हैं।

यह ऊपर लिखे गए वाक्य वाकई सुनने में अथवा पढ़ने में काफी दिलचस्प दिखाई देते हैं इसके साथ-साथ यह भारत की भिन्न तस्वीर पेश करता है जो असल में होठों में मुस्कान लाने के काबिल है। परन्तु यह वाक्य सत्य नहीं बल्कि अधूरा सत्य है।

अनुच्छेद 15 में यह जिक्र तो है कि भारत में किसी भी इंसान के साथ भेदभाव को मान्यता नहीं खासकर लिंग के आधार पर, लेकिन जब माँ के ही दरबार में खड़े मनुष्य अपने होने वाले बच्चे के रूप में बेटा मांगते हैं तो यह भेदभाव के न होने का चौला खुद ही हट जाता है।

यह भारत की वह तस्वीर को दिखाता है जिसमें सभी किस्म के व्यक्ति पर संविधान लागू तो होता है परन्तु महिलाओं को यहाँ शायद इंसान का रूप नहीं माना जाता यहाँ उन पर संविधान के अनुच्छेद में दिए गए अधिकार मानने का तो नहीं बल्कि रीति रिवाज को उनसे जबरदस्ती मनवाने के मौका देती है।

लड़कियों/औरतों के खिलाफ अपराध

भारत में प्राचीन समय से महिलाओं को उनका सही स्थान प्राप्त नहीं हो पाया यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि जिस देश में यह मान्य हो, यह मिसाल दी जाती हो कि महिलाएं शक्ति का रूप है औऱ नवरात्र के नौ दिनों में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।

परन्तु साल के 365 दिन उन्ही औरत रूपी देवियों को अपशब्द से नवाजा जाता है हालांकि कानून के मुताबिक इस अपशब्दों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता लेकिन कुछ निम्मनलिखित अपराध का जिक्र नीचे किया गया है जिसे पुरुष प्रधान सोच ने ही विकसित किया है इसमें से कुछ अपराधों को तो रीति रिवाज के नाम पर करवाया जाता है।

बलात्कार:- यह अपराध नहीं बल्कि पुरुष की गलत सोच-नजर का प्रतीक है अपनी हवस मिटाने का जरिया है। किसी भी शख्स के बिना मर्जी के उस शख्स से शारिरिक संबन्ध बनाने को ही बलात्कार कहते हैं औऱ बलात्कार के केस में हर साल इजाफा हुआ है यह चिंतित का विषय है।

सती प्रथा:- सती प्रथा भारत मे प्राचीन वक्त में चलता था हालांकि यह अब पूर्ण रूप से समाप्त हो चुका है परन्तु यह प्रथा भी महिलाओं के खिलाफ एक अपराध का नमूना है। इस प्रथा के मुताबिक अगर शादी कर चुकी महिला का पति मर गया हो तो उसकी चिता के साथ पत्नी को भी अग्नि के हवाला कर दिया जाता था कभी-कभी तो वधु स्वंय इसके लिए हामी भर देती थी परन्तु कुछ से जबरदस्ती करवाया जाता था।

दहेज प्रथा:- यह प्रथा का जिक्र भी प्राचीन समय के भारत में मिलता है यह प्रथा का मूल रूप शुभ है, इस प्रथा के पौराणिक मान्यता के अनुसार इसमें वधु के परिवार वाले उसे शादी के पश्चात वधु को कुछ उपहार स्वरूप भेंट करते हैं ताकि वधु अपना सुख जीवन व्यतीत कर सकें लेकिन आज के समय मे यह प्रथा वधु के परिवार से जबतदस्ती मनवाई जाती है।

कन्या भ्रूण हत्या:- लड़का पाने की इच्छा परिवार में बेहद बढ़ चुकी है जिसके कारण यह अपराध ने परिवार में जन्म लिया इनके मुताबिक लड़कियां केवल बोझ है इसीलिए उन्हें पैदा होने से पहले ही गर्भ में ही मार दिया जाता है।

आज कुछ स्थिति बदल चुकी हैं जिसमें क़ानूनों को कठोर किया गया है वर्ना पहले तो गर्भवती महिलाओं के घर से जब हस्पताल में यह जानकारी प्राप्त करने के लिए जांच की जाती थीं कि होने वाला शिशु एक लड़का होगा या लड़की तो यह भारत की छवि धूमिल करने का काम करती थीं।

यह लड़का लड़की के बीच भेद भाव की पहली सीढ़ी है सैंकड़ो बच्चियों को दुनिया देखने का अवसर ही नहीं मिल पाता तो कुछ की आंखे अनाथ आश्रम में ही खुलती है। बेटियों की यही बुरी अवस्था को देखते हुए देश की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बेटियों की पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए एवं लोगों में यह सोच को जाग्रत करने के लिए की समाज का हर व्यक्ति एक समान है चाहे वे पुल्लिंग हो या स्त्रीलिंग।

भारत को लेकर यह कहा जाता है कि यह देश 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो से आजाद हो गया था परन्तु भारत के पुरुष प्रधान सोच से आजादी अभी भी नहीं मिली है। इसी से आजादी दिलाने हेतु भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को भारत में लागू कर दिया जो भारत के लोगों को लड़कियों के पैदा होने को जश्न के रूप मनाने के लिए आमंत्रित करता है।

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HP Jinjholiya
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मेरा नाम HP Jinjholiya है, मैंने 2015 में ब्लॉगस्पॉट पर एक ब्लॉगर के रूप में काम करना शुरू किया उसके बाद 2017 में मैंने NewsMeto.com बनाया। मैं गहन शोध करता हूं और हमारे पाठकों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री उत्पादित करता हूं। हर एक सामग्री मेरे व्यापक विशेषज्ञता और गहरे शोध पर आधारित होती है।

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