Revanth Reddy Politics: तेलंगाना की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने चुनाव जीतते ही बीआरएस पार्टी को कमजोर करने की चालें चल दीं। एक समय तेलंगाना में मजबूत पकड़ रखने वाले केसीआर की पार्टी बीआरएस अब अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है।
बीआरएस के 10 विधायक और 6 एमएलसी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। विधानसभा में कांग्रेस का स्पीकर होने के कारण पार्टी बदलने की प्रक्रिया में कोई अड़चन नहीं आई। केसीआर ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन अब तक कोई राहत नहीं मिली।
तेलंगाना में कांग्रेस की बढ़त
रेवंत रेड्डी ने तेलंगाना में कांग्रेस को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 64 सीटें जीती थीं, जबकि बीआरएस को 39 सीटें मिली थीं। उपचुनाव में एक और सीट जीतने के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 65 हो गई। इसके बाद बीआरएस के विधायक कांग्रेस में जाने लगे और आज कांग्रेस के पास 76 विधायकों का समर्थन है, जबकि बीआरएस सिर्फ 28 पर सिमट गई है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी कांग्रेस सरकार के साथ खड़ी नजर आ रही है।
केसीआर का कानूनी संघर्ष
बीआरएस ने पार्टी बदलने वाले विधायकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ इतना कहा कि विधायकों के दल बदल पर फैसला तय समय में लिया जाए। तेलंगाना हाई कोर्ट ने भी सितंबर 2023 में चार हफ्तों के अंदर निर्णय लेने को कहा था, लेकिन स्पीकर ने ज्यादा समय लेकर फैसला टाल दिया।
दलबदल कानून और राजनीति
भारत में दलबदल कानून को 1985 में 52वें संविधान संशोधन के तहत लागू किया गया था। इसमें यह तय किया गया कि अगर दो तिहाई विधायक एक साथ पार्टी बदलते हैं, तो उनकी सदस्यता खत्म नहीं होगी। लेकिन तेलंगाना में ऐसा नहीं हुआ। बीआरएस के खिलाफ गए 10 विधायकों को अलग-अलग मामलों में घेरा जा सकता है। अगर कोर्ट ने उन्हें दोषी माना, तो उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म हो सकती है और उपचुनाव कराए जा सकते हैं।
महाराष्ट्र की तरह हालात?
तेलंगाना में जो हो रहा है, वैसा ही 2022 में महाराष्ट्र में हुआ था, जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बगावत कर उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा दी थी। तब भी स्पीकर ने फैसला लेने में देरी की थी और सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर पर दबाव बनाया था। तेलंगाना में भी कांग्रेस का स्पीकर होने से बीआरएस के लिए कानूनी लड़ाई मुश्किल होती जा रही है।
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