Premanand Ji Maharaj: गुरुदेव ने बताया क्यों शिवजी को छोड़कर क्यों जुड़े राधा रानी से?

Premanand Ji Maharaj: “क्या शिवजी की आराधना छोड़ना इतना कठिन है?” इस प्रश्न का उत्तर प्रेमानंद जी महाराज ने अपनी साधना के अनुभवों से दिया। उन्होंने बताया कि भक्ति मार्ग में हर परिवर्तन एक बड़ा संघर्ष होता है। काशी में भगवान शिव की उपासना से शुरू हुई उनकी साधना ने उन्हें वृंदावन में राधा रानी के चरणों में समर्पित कर दिया। इस परिवर्तन में वर्षों का समय लगा, और इस दौरान उनका आंतरिक संघर्ष प्रेरणा देने वाला है।

शिवजी की कृपा ने खोला राधा भक्ति का मार्ग

गुरुदेव ने बताया कि उनकी साधना का आरंभ भगवान शिव की आराधना से हुआ। लेकिन जब उनके जीवन में राधा नाम का अद्भुत प्रकाश प्रकट हुआ, तो यह शिवजी की कृपा से ही संभव हो पाया। उन्होंने साझा किया, “शिवजी से प्रार्थना की कि जिस मार्ग पर आपने भेजा है, उसमें दृढ़ता प्रदान करें। उनकी कृपा के बिना राधा रानी के प्रेम को पाना असंभव था।”

इस दौरान उनका मानसिक संघर्ष जारी रहा। वर्षों तक वह भगवान शिव की मानसिक पूजा और चिंतन करते रहे। लेकिन धीरे-धीरे उनकी साधना का केंद्र राधा रानी बन गई। उन्होंने स्वीकार किया कि भगवान शिव के प्रति उनकी श्रद्धा और भावना आज भी उतनी ही प्रबल है जितनी पहले थी।

शिवजी और राधा रानी: क्या हैं एक ही?

प्रेमानंद जी महाराज ने एक अद्भुत रहस्य उजागर किया। उन्होंने देवी भागवत के श्लोकों का हवाला देते हुए कहा कि भगवान शिव और राधा रानी में कोई अंतर नहीं है। “शिवजी ही श्रीजी हैं,” उन्होंने कहा। उनके अनुसार, “भगवान शंकर गौरांग रूप में राधा रानी के प्रेम स्वरूप हैं। यह भाव समझने में वर्षों लगे, लेकिन जब समझ आया, तब चित्त की पूर्ण एकाग्रता संभव हुई।”

इस अद्भुत ज्ञान ने उनकी साधना को और गहराई दी। उन्होंने बताया कि कैसे शिवजी की आराधना और राधा रानी की भक्ति एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

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भक्ति मार्ग में संघर्ष और शिवजी का आशीर्वाद

गुरुदेव ने यह भी साझा किया कि शिवजी की पूजा छोड़ने में उन्हें कितना आंतरिक संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने कहा, “यह कोई असत अभ्यास नहीं था। सत अभ्यास को बदलने में समय लगता है।” काशी के विश्वनाथ मंदिर, ओंकारेश्वर, और महाकालेश्वर से उनके पुराने भाव अब भी जागृत होते हैं। जब भी वह उन स्थानों का प्रसाद देखते हैं, उनका मन शिवजी की भक्ति में डूब जाता है।

गुरुदेव ने स्पष्ट किया कि यह संघर्ष शिवजी की कृपा और उनके आशीर्वाद से ही समाप्त हुआ। उन्होंने कहा, “शिवजी ने ही हमें राधा रानी के चरणों में समर्पित किया। उनके बिना यह परिवर्तन संभव नहीं था।”

शिव और राधा: भक्ति का अद्वितीय संगम

प्रेमानंद जी महाराज की कथा एक प्रेरणा है कि भक्ति मार्ग में कोई सीमा नहीं होती। उनकी साधना बताती है कि भगवान शिव की आराधना और राधा रानी की भक्ति एक ही दिव्य यात्रा के दो पड़ाव हैं।

गुरुदेव की इस यात्रा से एक महत्वपूर्ण संदेश मिलता है—आंतरिक संघर्ष से ही सच्चे भक्ति मार्ग की प्राप्ति होती है। उनकी कथा हर साधक को यह सिखाती है कि श्रद्धा, धैर्य और गुरु कृपा से ही भक्ति का परम आनंद संभव है।

प्रेमानंद जी महाराज की भक्ति यात्रा शिवजी की कृपा और राधा रानी के प्रेम का अद्वितीय संगम है। यह कथा न केवल भक्ति की गहराई को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि जीवन में हर परिवर्तन समय और प्रयास मांगता है।

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