America Tariff Plan: अमेरिका विदेशी देशों से वसूलेगा मेंबरशिप फीस, आपकी जेब पर क्या होगा असर

अमेरिका का नया प्लान सुनकर दंग रह जाएंगे! विदेशी देशों से ‘मेंबरशिप फीस’ वसूलकर ट्रंप अपनी अर्थव्यवस्था बचाना चाहते हैं, लेकिन क्या ये मास्टरस्ट्रोक है या बड़ी भूल? टैरिफ से सामान महंगा होगा, गरीबों की कमाई पर चोट पड़ेगी और कर्ज का पहाड़ भी बढ़ सकता है। क्या दुनिया इस खेल में साथ देगी या अमेरिका खुद फंस जाएगा?

America Tariff Plan: अमेरिका से एक हैरान करने वाली खबर आ रही है। वहां की सरकार अब विदेशी देशों से कह रही है कि अगर आपको हमारे बाजार में सामान बेचना है, तो पहले ‘मेंबरशिप फीस’ दो। ये सुनकर लगता है कि दुनिया का सबसे ताकतवर देश अब अपने खर्चों को भरने के लिए नया खेल शुरू कर रहा है, लेकिन क्या ये सच में काम करेगा?

टैरिफ का ढोंग या असली खेल

अमेरिकी नेता ट्रंप और उनकी टीम का कहना है कि वो अपने देश का कर्ज कम करना चाहते हैं। इसके लिए वो सरकारी खर्च घटाएंगे और टैक्स में बड़ी कटौती करेंगे। लेकिन पैसा कहां से आएगा? ट्रंप का प्लान है कि विदेशी देशों पर टैरिफ बढ़ाकर और उनसे ‘फीस’ वसूलकर ये कमी पूरी की जाए। मगर सवाल ये है कि क्या चीन, कनाडा या मैक्सिको जैसे देश चुपचाप ये पैसा दे देंगे? जानकारों का कहना है कि ऐसा होना मुश्किल है, क्योंकि ये देश पहले से ही दूसरी जगहों पर अपने सामान बेचने की तैयारी कर रहे हैं।

आपकी जेब पर पड़ेगी मार

अमेरिका का दावा है कि टैरिफ से विदेशी कंपनियां पैसे देंगी, लेकिन हकीकत कुछ और कहती है। वहां के लोग ही इसकी कीमत चुकाएंगे। अगर टैरिफ लगे, तो सामान महंगा हो जाएगा और हर अमेरिकी घर को सालाना 1200 डॉलर यानी करीब 1 लाख रुपये का नुकसान हो सकता है। गरीबों के लिए तो ये और भी बड़ी मुसीबत होगी, क्योंकि उनकी कमाई का 2.7% हिस्सा सीधे खत्म हो जाएगा। यानी ये टैरिफ आम आदमी की जेब से पैसे निकालकर सरकार के खजाने में डालने का खेल लगता है।

क्या होगा आगे का नतीजा

अगर ट्रंप का ये प्लान चल गया, तो अमेरिका की अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मच सकती है। कीमतें बढ़ेंगी, महंगाई बेकाबू हो सकती है और बाजार भी गिर सकता है। दूसरी तरफ, अगर देशों ने ‘मेंबरशिप फीस’ देने से मना कर दिया, तो अमेरिका को और कर्ज लेना पड़ेगा। इससे उसका कर्ज 2035 तक 160% तक बढ़ सकता है, जो पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है। भारत जैसे देशों को भी सतर्क रहना होगा, क्योंकि अमेरिकी डॉलर की कीमत गिरने से हमारी जेब पर भी असर पड़ेगा।

तो क्या ये योजना अमेरिका को बचा पाएगी या उसे और गहरे संकट में डाल देगी? ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिन आसान नहीं होंगे। आप क्या सोचते हैं, क्या विदेशी देश सच में ये फीस देंगे या ट्रंप का सपना अधूरा रह जाएगा?

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