Caste Census: रविश कुमार ने खोली बीजेपी की पोल, विपक्ष के मुद्दे पर क्यों सवार है बीजेपी?

Ravish Kumar Exposes BJP Truth Behind Caste Census

Ravish Kumar की कलम से: “जाति गणना कराने का फैसला बीजेपी का नहीं, विपक्ष का था!” रविश कुमार के ताजा वीडियो ने एक बार फिर भारत की सियासत में हलचल मचा दी है। जाति गणना के मुद्दे पर बीजेपी की रणनीति और राहुल गांधी की अटल लड़ाई को रविश ने अपनी बेबाक शैली में सामने रखा। यह कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की जड़ों की है, जो हर हिंदुस्तानी के दिल को छूती है।

मोदी सरकार का यू-टर्न

जब से केंद्र सरकार ने जाति गणना का ऐलान किया, बीजेपी समर्थक इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता बता रहे हैं। लेकिन रविश पूछते हैं, “क्या बीजेपी राहुल गांधी का एक भी बयान दिखा सकती है, जिसमें उन्होंने जाति गणना का विरोध किया हो?” सोशल मीडिया पर बीजेपी नेताओं के पुराने बयान वायरल हैं, जिनमें वे इस मुद्दे को “खतरनाक” और “देश तोड़ने वाला” बताते थे। नितिन गडकरी ने तो “जाति की बात करने वालों को लात मारने” तक की बात कही थी। योगी आदित्यनाथ ने इसे सनातन धर्म के खिलाफ बताया। फिर अचानक यह मुद्दा बीजेपी का कैसे हो गया?

राहुल गांधी की जिद

दूसरी तरफ, राहुल गांधी ने न सिर्फ जाति गणना को राष्ट्रीय मंच पर उठाया, बल्कि अपनी पार्टी कांग्रेस को भी इसकी जरूरत बताई। रविश कहते हैं, “राहुल ने न सिर्फ बीजेपी से, बल्कि अपनी पार्टी के भीतर भी इस मुद्दे के लिए लड़ाई लड़ी।” राहुल का एक साल पुराना बयान गूंजता है, जिसमें वे कहते हैं, “कांग्रेस को बदलना होगा, 90% आबादी को न्याय देना होगा।” उन्होंने संसद में कहा, “जाति गणना हम कराकर दिखाएंगे, चाहे जितनी गालियां मिलें।” यह जिद थी 73% दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के हक की, जिसे राहुल ने अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के साथ मिलकर मजबूती दी।

बीजेपी का इतिहास

रविश इतिहास के पन्ने पलटते हैं। 1978 में कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में OBC को 26% आरक्षण दिया, तो जनसंघ (बीजेपी की पूर्वज) ने उनकी सरकार गिरा दी। मंडल कमीशन के विरोध में वीपी सिंह की सरकार भी बीजेपी ने गिराई। रथ यात्रा निकाली गई, जिसके सारथी नरेंद्र मोदी थे। रविश सवाल उठाते हैं, “OBC आरक्षण के सवाल पर दो बार सरकार गिराने का रिकॉर्ड किसका है? सांप्रदायिकता की आग में देश को झोंकने का रिकॉर्ड किसका है?” बीजेपी के लिए यह सवाल जवाब देना मुश्किल है।

सामाजिक न्याय बनाम धर्म की सियासत

रविश इस बहस को दो रास्तों पर ले जाते हैं: सामाजिक न्याय की राजनीति बनाम धर्म की सियासत। वे कहते हैं, “सामाजिक न्याय प्रतिस्पर्धा देता है, सबको मौका देता है। धर्म की सियासत नफरत और हिंसा फैलाती है।” बीजेपी ने “बटेंगे तो कटेंगे” का नारा दिया, लेकिन राहुल ने 90% आबादी की ताकत को जगाने की बात की। रविश चेताते हैं, “धर्म की सियासत ने संस्थाओं को तोड़ा, पत्रकारों को डराया, लेकिन सामाजिक न्याय ने हिंसा की आग बुझाई और लोकतंत्र को तार्किक बनाया।”

क्या बदलेगा वर्चस्व का ढांचा?

जाति गणना से क्या बदलाव आएगा? रविश स्पष्ट करते हैं, “वर्चस्व का ढांचा शायद पूरी तरह न बदले, लेकिन डरक जरूर जाएगा।” वे बंधोपाध्याय आयोग की रिपोर्ट का जिक्र करते हैं, जो बिहार में भूमि सुधार की बात करती है, लेकिन दबी पड़ी है। सामाजिक न्याय की राह आसान नहीं, मगर रविश का मानना है कि 90% की ताकत को चुप नहीं रखा जा सकता।

यह सिर्फ जाति गणना की कहानी नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की दिशा तय करने की कोशिश है। रविश पूछते हैं, “क्या आप धर्म की सियासत चाहते हैं, जो हिंसा और झूठ पैदा करती है, या सामाजिक न्याय, जो सबको मौका देता है?” राहुल गांधी की तरह रविश भी मानते हैं कि सच सामने लाने से हिंदुस्तान की सियासत बदलेगी। यह कहानी हर उस शख्स के लिए है, जो लोकतंत्र में अपनी हिस्सेदारी चाहता है।

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