अमेरिका की चाल बांग्लादेश में UN के बहाने बना रहा है बेस, चुनाव और तख्तापलट की आहट

U.S. Strategy in Bangladesh Building Base via UN, Signs of Election Turmoil & Coup

बांग्लादेश में इन दिनों सियासी माहौल गर्म है और उसकी वजह है एक ऐसा फैसला जिसे लेकर अब सवाल उठ रहे हैं – क्या अमेरिका UN की आड़ में बांग्लादेश में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है?

पूरा मामला शुरू हुआ जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने UN के एक प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। इस प्रस्ताव के मुताबिक, कॉक्स बाजार से म्यांमार के रखाइन प्रांत तक रोहिंग्याओं की मदद के लिए एक “ह्यूमैनिटेरियन कॉरिडोर” यानी मानवीय सहायता गलियारा बनाया जाना था। पहली नजर में तो ये एक मानवीय कदम लगता है, लेकिन सेना ने इसपर कड़ा ऐतराज जताया और पूरा मामला उलझ गया।

सेना को क्यों नहीं पसंद आया कॉरिडोर

सेना का मानना है कि इस रास्ते से रोहिंग्या मुसलमानों की और बड़ी संख्या में बांग्लादेश में एंट्री हो सकती है। पहले ही देश में लाखों रोहिंग्या शरण लिए हुए हैं, और अब और लोगों के आने की गुंजाइश नहीं बची है। सेना ने यूनुस को साफ शब्दों में कहा – “नो ब्लडी कॉरिडोर!” इतना ही नहीं, सेना को ये भी शक है कि इस गलियारे के जरिए अमेरिका बांग्लादेश में अपनी मौजूदगी पक्की करना चाहता है।

अराकान आर्मी और भारत का नाम भी आया सामने

म्यांमार के रखाइन इलाके में सक्रिय अराकान आर्मी, जो बौद्ध चरमपंथियों की एक विद्रोही सेना मानी जाती है, वो भी इस विवाद का हिस्सा बन गई है। आरोप है कि भारत इस सेना को सपोर्ट करता है और उसके जरिए बांग्लादेश को दो हिस्सों में बांटने की योजना पर काम कर रहा है। सेना को डर है कि अगर UN या US यहां बेस बना लेते हैं, तो भारत की रणनीति को और ताकत मिल सकती है।

यूनुस ने पलटी मारी, अब इस्तीफे की बात

सेना के सख्त रुख के बाद यूनुस ने अपने फैसले से यू-टर्न ले लिया। उन्होंने कहा कि अब कोई कॉरिडोर नहीं बनेगा। लेकिन तब तक राजनीतिक हड़कंप मच चुका था। अब यूनुस खुद को राजनीतिक साजिश का शिकार बता रहे हैं और इस्तीफा देने की बात कर रहे हैं। उनका ये कदम भी एक दांव माना जा रहा है ताकि जनता की सहानुभूति बटोरी जा सके।

विपक्षी पार्टियां जो यूनुस को समर्थन दे रही थीं, अब उनसे खफा हैं। उनका कहना है कि यूनुस चुनाव करवाने में टालमटोल कर रहे हैं जिन छात्र नेताओं ने उन्हें सत्ता तक पहुंचाया, अब वो खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

चुनाव और तख्तापलट की आहट?

जैसे-जैसे अक्टूबर-दिसंबर में संभावित चुनाव की बात चल रही है, माहौल और गरमाता जा रहा है। सेना खुलकर नाराज़ है, विपक्ष आक्रोश में है और यूनुस अपनी कुर्सी बचाने के लिए हर दांव चल रहे हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है – क्या बांग्लादेश में सेना तख्तापलट करेगी या चुनाव के जरिए बदलाव आएगा?

जो भी हो, बांग्लादेश का अगला कदम सिर्फ वहां की राजनीति को नहीं बल्कि भारत, अमेरिका और म्यांमार जैसे देशों के रिश्तों को भी प्रभावित करेगा।

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