बेंगलुरु के बिस्मिल्लाह नगर में भारी बारिश के बाद मुख्यमंत्री सिद्दारमैया और पूर्व विधायक सौम्या रेड्डी पहुंचे यहां के मुस्लिम समुदाय से उर्दू में बातचीत हुई लेकिन इस दौरान कन्नड़ भाषा की गैर-मौजूदगी पर सवाल उठे इसने भाषा और वोट बैंक की राजनीति को लेकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
बिस्मिल्लाह नगर में बारिश का असर, नेताओं का दौरा
बेंगलुरु में हाल ही में आई मूसलाधार बारिश ने कई इलाकों को बुरी तरह से प्रभावित किया है खासकर बिस्मिल्लाह नगर में जलभराव और नुकसान की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं इस बीच मुख्यमंत्री सिद्दारमैया और पूर्व विधायक सौम्या रेड्डी हालात का जायजा लेने मौके पर पहुंचे।
लेकिन लोगों की नजर बारिश से ज़्यादा एक और चीज़ पर टिक गई जब उन्होंने देखा कि स्थानीय मुस्लिम समुदाय से नेताओं की बातचीत पूरी तरह उर्दू में हो रही है।
A day ago, CM Siddaramaiah along with former MLA Sowmya Reddy visited the rain affected area Bismillah Nagar, Bengaluru.
— DSH MAX (@team_dsh_1) May 23, 2025
Most of the Muslims there spoke to Sowmya Reddy in Urdu, Sowmya Reddy also replied to them in Urdu/hindi
Why Bengaluru muslims don't speak kannada? Where are… pic.twitter.com/Dmn43eoNQT
उर्दू में बातचीत, कन्नड़ नदारद
बेंगलुरु कर्नाटक की राजधानी है और यहां कन्नड़ भाषा को लेकर हमेशा संवेदनशीलता रही है लेकिन बिस्मिल्लाह नगर में नेताओं और स्थानीय मुस्लिमों के बीच बातचीत में कन्नड़ का नामोनिशान तक नहीं दिखा। सारी बातचीत उर्दू में हुई जिससे लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए कि कन्नड़ की अनदेखी क्यों हो रही है।
कुछ लोगों का कहना है कि जब हिंदी भाषी लोगों के खिलाफ कन्नड़ समर्थक आवाजें उठती हैं तब मुस्लिम इलाकों में कन्नड़ के बजाय उर्दू का प्रयोग क्यों अनदेखा किया जाता है।
कन्नड़ कार्यकर्ता कहां हैं अब?
सोशल मीडिया पर ये सवाल ज़ोर पकड़ रहा है कि जिन कन्नड़ समर्थकों को हिंदी बोलने वालों से दिक्कत होती है वे अब कहां हैं। क्या कन्नड़ भाषा की चिंता सिर्फ तब होती है जब सामने कोई हिंदी भाषी होता है। उर्दू बोलने वाले मुस्लिमों के खिलाफ कोई सवाल क्यों नहीं उठता।
क्या ये वोट बैंक की राजनीति है या फिर जानबूझकर मुद्दे को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है ये सवाल अब खुलेआम पूछे जा रहे हैं।
वोट बैंक की राजनीति या सांस्कृतिक सच्चाई?
राजनीति जानती है कि कौन सा इलाका किस भाषा में बात करता है और किस समुदाय का वोट कैसे सुरक्षित रखा जाए। बिस्मिल्लाह नगर की उर्दू-प्रमुख पहचान को देखते हुए नेताओं ने उसी भाषा में संवाद किया लेकिन सवाल उठता है कि अगर यही चीज़ किसी और समुदाय के साथ होती तो क्या प्रतिक्रिया इतनी शांत होती।
कन्नड़ भाषा को लेकर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप अब नेताओं और सामाजिक संगठनों पर लग रहा है। भाषा सिर्फ संवाद का ज़रिया नहीं बल्कि सांस्कृतिक पहचान भी होती है ऐसे में इस तरह की राजनीति से कर्नाटक की भाषाई एकता पर असर पड़ सकता है।
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